yahi khasiyat hain blog ka ki aap ki likhi hui cheeze ab sab pad sakhte hain . chapvane ki zarurat bhi nahi hain 🙂 aur turant uski prati opinions bhi mil jaata hain 🙂
बहुत ही सरल शब्दों के साथ आपने सामान्य मानुष ब्लाग की उपयोगिता का वर्णन किया है,वाकई आप बधाई की पात्र हैं!
बहुत खूब रेखा जी!
इस बात से और भी खुशी होती है आप इतना ज़्यादा पढ़ा-लिखा होने के बावजूद अपनी हिन्दी भाषा का इस्तेमाल करती हैं,वरना जिसे देखो हिन्दुस्तानी होने के बावजूद इंग्लीश का मास्टर बना बैठा है!प्रशन हिन्दी में सुनेंगे पर जवाब इंग्लीश में देंगे?
तारीफ़ के लिये दिल से धन्यवाद. नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर के अनुसार लेखकों को अपने मातृभाषा में लिखना चहिये. मैं भी उनके इस बात से सहमत हूँ.
पर भाषा को लेखन में बाधक नहीँ बनने देना चहिये. अंग्रेजी की पहुँच हिंदी की अपेक्षा अधिक लोगों तक हैं. विशेष कर हमारे भरत जैसे अनेक भाषा वाले देश में.
yahi khasiyat hain blog ka ki aap ki likhi hui cheeze ab sab pad sakhte hain . chapvane ki zarurat bhi nahi hain 🙂 aur turant uski prati opinions bhi mil jaata hain 🙂
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Nice words. Very true!
Hope the happiness & thrill of Blogging lasts!
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This line is perfect – “धन्यवाद ब्लॉग की दुनिया। मन की बातें लिखने के लिए
इतना बड़ा आसमान और इतनी बड़ी धरती दे दी है ।”
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धन्यवाद, मेरा ख़्याल पसंद आया जान कर अच्छा लगा।
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हाँ। बिलकुल सही कहा आपने। लिखने के साथ-साथ ढेरो लोगों के विचार भी पढ़ने का अवसर मिलता है।
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Hi Shammi di! Aap bahut achcha likhti hain. Aapka yeh hidden talent padhkar bahut achcha laga. You express so beautifully. Abhi aur kaafi padhna baaki hai.
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Thank u Reena. Comment padh kar àccha lagaa.
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धन्यवाद। आराम से धीरे-धीरे पढ़ो। कुछ सुझाव हो तब जरूर बताना।
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Earlier I was a study material write in Nalanda open University Patna. अब ब्लॉग लिखने में अच्छा लागने लगा है।
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बहुत ही सरल शब्दों के साथ आपने सामान्य मानुष ब्लाग की उपयोगिता का वर्णन किया है,वाकई आप बधाई की पात्र हैं!
बहुत खूब रेखा जी!
इस बात से और भी खुशी होती है आप इतना ज़्यादा पढ़ा-लिखा होने के बावजूद अपनी हिन्दी भाषा का इस्तेमाल करती हैं,वरना जिसे देखो हिन्दुस्तानी होने के बावजूद इंग्लीश का मास्टर बना बैठा है!प्रशन हिन्दी में सुनेंगे पर जवाब इंग्लीश में देंगे?
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तारीफ़ के लिये दिल से धन्यवाद. नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर के अनुसार लेखकों को अपने मातृभाषा में लिखना चहिये. मैं भी उनके इस बात से सहमत हूँ.
पर भाषा को लेखन में बाधक नहीँ बनने देना चहिये. अंग्रेजी की पहुँच हिंदी की अपेक्षा अधिक लोगों तक हैं. विशेष कर हमारे भरत जैसे अनेक भाषा वाले देश में.
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बस आप ऐसे ही लिखते रहिये. अच्छा लिखते हैं आप. साथ ही मेरे आलोचक /क्रिटिक बन कर सुझाव देते रहिये.
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भारत *
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