बिना ग़लती की सज़ा January 2, 2019January 2, 2019 Rekha Sahay ना जाने क्यों कभी कभी किसी दिन यादें बड़ी बेदर्द हो जातीं हैं. बार बार आ कर यातनाएं दे जातीं हैं। जब लगता है, शायद अब सब ठीक है। तभी ना जाने कहाँ से एक छोटी सी सुराख़ बना, यादों की कड़ी…….जंजीर बन जाती है। बिना ग़लती की सज़ा दे जाती हैं. Rate this:Share this:FacebookMorePinterestTumblrLinkedInPocketRedditTwitterTelegramLike Loading... Related
हाँ, जिंदगी में सब रंग आते-जाते रहते हैं। तुम अपने उम्र की अपेक्षा काफी परिपक्व बातें करते हो। LikeLike Reply
क्योंकि……,
जीवन ही पीड़ा है, और जीवन ही पावन।
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हाँ, जिंदगी में सब रंग आते-जाते रहते हैं।
तुम अपने उम्र की अपेक्षा काफी परिपक्व बातें करते हो।
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