बिना ग़लती की सज़ा

ना जाने क्यों कभी कभी

किसी दिन

यादें बड़ी बेदर्द हो जातीं हैं.

बार बार कर यातनाएं दे जातीं  हैं।

जब लगता है,

शायद अब सब ठीक है।

तभी ना जाने कहाँ से एक छोटी सी

सुराख़ बना, यादों की  कड़ी…….जंजीर बन जाती है।

बिना ग़लती की सज़ा दे जाती हैं.

2 thoughts on “बिना ग़लती की सज़ा

    1. हाँ, जिंदगी में सब रंग आते-जाते रहते हैं।
      तुम अपने उम्र की अपेक्षा काफी परिपक्व बातें करते हो।

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